Bhajans

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जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम

भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख …

शीतल बने आग चंदन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें
जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी
युग-युग से प्यासी मरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख …

जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में
मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं
पानी के प्यासे को तक़दीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया
ऐसा ही सुख …

हमको मनकी शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरोंकी जय से पहले, खुदकी जय करें
हमको मनकी शक्ति देना …

भेद-भाव अपने दिलसे, साफ़ कर सकें
दूसरोंसे भूल हो तो, माफ़ कर सकें
झूठ से बचे रहें, सचका दम भरें
दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें
हमको मनकी शक्ति देना …

मुश्किलें पड़ें तो हमपे, इतना कर्म कर
साथ दें तो धर्म का, चलें तो धर्म पर
खुदपे हौसला रहे, सचका दम भरें
दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें
हमको मनकी शक्ति देना …

हे जगत्राता विश्वविधाता हे सुखशांतिनिकेतन हे
प्रेमके सिंधो दीनके बंधो दुःख दरिद्र विनाशन हे
नित्य अखंड अनंत अनादी पूर्ण ब्रह्मसनातन हे
जग आश्रय जगपती जगवंदन अनुपम अलख निरंजन हे
प्राण सखा त्रिभुवन प्रतिपालक जीवनके अवलंबन ह
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ताकि हंसते हुये निकले दम

जब ज़ुल्मों का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें
हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम
और मिटे बैर का ये भरम
नेकी पर चलें …

ये अंधेरा घना छा रहा
तेरा इनसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर
कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छिपा जा रहा
है तेरी रोशनी में वो दम
जो अमावस को कर दे पूनम
नेकी पर चलें …

बड़ा कमज़ोर है आदमी
अभी लाखों हैं इसमें कमीं
पर तू जो खड़ा
है दयालू बड़ा
तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तूने जो हमको जनम
तू ही झेलेगा हम सबके घम
नेकी पर चलें …

बनवारी रे
जीने का सहारा तेरा नाम रे
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे

झूठी दुनिया झूठे बंधन, झूठी है ये माया
झूठा साँस का आना जाना, झूठी है ये काया
ओ, यहाँ साँचा तेरा नाम रे
बनवारी रे …

रंग में तेरे रंग गये गिरिधर, छोड़ दिया जग सारा
बन गये तेरे प्रेम के जोगी, ले के मन एकतारा
ओ, मुझे प्यारा तेरा धाम रे
बनवारी रे …

दर्शन तेरा जिस दिन पाऊँ, हर चिन्ता मिट जाये
जीवन मेरा इन चरणों में, आस की ज्योत जगाये
ओ, मेरी बाँहें पकड़ लो श्याम रे
बनवारी रे …

जो तुम तोड़ो पीया मैं नहीं तोड़ूँ रे
तोसा प्रीत तोड़ कृष्ण कौन सँग जोड़ूँ रे

तुम भए मोती प्रभु हम भए धागा
तुम भए सोना हम भए सुहागा

मीरा कहे प्रभु ब्रिज के बासी
तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी

दरशन दो घनश्याम नाथ मोरी, अँखियाँ प्यासी रे
मन मंदिर की ज्योति जगादो, घट घट बासी रे

मंदिर मंदिर मूरत तेरी
फिर भी ना दीखे सूरत तेरी
युग बीते ना आई मिलन की
पूरणमासी रे …

द्वार दया का जब तू खोले
पंचम सुर में गूंगा बोले
अंधा देखे लंगड़ा चल कर
पहुँचे कासी रे …

पानी पी कर प्यास बुझाऊँ
नैनों को कैसे समझाऊँ
आँख मिचौली छोड़ो अब
मन के बासी रे …

निर्बल के बल धन निर्धन के
तुम रख वाले भक्त जनों के
तेरे भजन में सब सुख पाऊँ
मिटे उदासी रे …

नाम जपे पर तुझे ना जाने
उनको भी तू अपना माने
तेरी दया का अंत नहीं है
हे दुख नाशी रे …

आज फैसला तेरे द्वार पर
मेरी जीत है तेरी हार पर
हार जीत है तेरी मैं तो
चरण उपासी रे …

द्वार खड़ा कब से मतवाला
मांगे तुम से हार तुम्हारी
नरसी की ये बिनती सुनलो
भक्त विलासी रे …

लाज ना लुट जाये प्रभु तेरी
नाथ करो ना दया में देरी
तीन लोक छोड़ कर आओ
गंगा निवासी रे …

ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो

जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला
जो निर्धन है जो निर्बल है वह है प्रभू का प्यारा
प्यार के मोती लुटाते चलो, प्रेम की गंगा…

आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनारा
बंद करो मत द्वार दया का दे दो कुछ तो सहारा
दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा…

छाई है छाओं और अंधेरा भटक गई हैं दिशाएं
मानव बन बैठा है दानव किसको व्यथा सुनाएं
धरती को स्वर्ग बनाते चलो, प्रेम की गंगा…

निर्बल से लड़ाई बलवान की -२
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की -२

इक रात अंधियारी, थीं दिशाएं कारी-कारी
मंद-मंद पवन था चल रहा
अंधियारे को मिटाने, जग में ज्योत जगाने
एक छोटा-सा दीया था कहीं जल रहा
अपनी धुन में मगन, उसके तन में अगन
उसकी लौ में लगन भगवान की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की

कहीं दूर था तूफ़ान…
कहीं दूर था तूफ़ान, दीये से था बलवान
सारे जग को मसलने मचल रहा
झाड़ हों या पहाड़, दे वो पल में उखाड़
सोच-सोच के ज़मीं पे था उछल रहा
एक नन्हा-सा दीया, उसने हमला किया -२
अब देखो लीला विधि के विधान की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की

दुनिया ने साथ छोड़ा, ममता ने मुख मोड़ा
अब दीये पे यह दुख पड़ने लगा -२
पर हिम्मत न हार, मन में मरना विचार
अत्याचार की हवा से लड़ने लगा
सर उठाना या झुकाना, या भलाई में मर जाना
घड़ी आई उसके भी इम्तेहान की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की

फिर ऐसी घड़ी आई – २, घनघोर घटा छाई
अब दीये का भी दिल लगा काँपने
बड़े ज़ोर से तूफ़ान, आया भरता उड़ान
उस छोटे से दीये का बल मापने

तब दीया दुखियारा, वह बिचारा बेसहारा
चला दाव पे लगाने, (बाज़ी प्राण की) – ४
चला दाव पे लगाने, बाज़ी प्राण की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की

लड़ते-लड़ते वो थका, फिर भी बुझ न सका -२
उसकी ज्योत में था बल रे सच्चाई का
चाहे था वो कमज़ोर, पर टूटी नहीं डोर
उसने बीड़ा था उठाया रे भलाई का
हुआ नहीं वो निराश, चली जब तक साँस
उसे आस थी प्रभु के वरदान की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की

सर पटक-पटक, पग झटक-झटक
न हटा पाया दीये को अपनी आन से
बार-बार वार कर, अंत में हार कर
तूफ़ान भागा रे मैदान से
अत्याचार से उभर, जली ज्योत अमर
रही अमर निशानी बलिदान की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की
निर्बल से लड़ाई बलवान की
यह कहानी है दीये की और तूफ़ान की

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो …
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु, किरपा करी अपनायो
जनम जनम की पूँजी पाई जगमें सभी खोवायो
खरचै न खूटै, चोर न लूटै, दिन दिन बढ़त सवायो
सत की नाव, खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरख हरख जस गायो
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम – २

हो, होइहै वही जो राम रचि राखा
को करे तरफ़ बढ़ाए साखा

हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी

हो, जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू

हो, जाकी रही भावना जैसी
रघु मूरति देखी तिन तैसी

रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो, हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

मुकुन्द माधव गोविन्द बोल
केशव माधव हरि हरि बोल.

हरि हरि बोल हरि हरि बोल
कृष्ण कृष्ण बोल कृष्ण कृष्ण बोल.

राम राम बोल राम राम बोल
शिव शिव बोल शिव शिव बोल

मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत…

तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुन मोरे व्याकुल मन की बात, तड़पत हरी दरसन…

बिन गुरू घ्य़ान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ
सब गुनी जन पे तुम्हारा राज, तड़पत हरी…

मुरली मनोहर आस न तोड़ो
दुख भंजन मोरे साथ न छोड़ो
मोहे दरसन भिक्शा दे दो आज दे दो आज, …

तोरा मन दर्पण कहलाये – २
भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये
तोरा मन दर्पण कहलाये – २

मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय
मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय
इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये
तोरा मन दर्पण कहलाये – २

सुख की कलियाँ, दुख के कांटे, मन सबका आधार
मन से कोई बात चुपे ना, मन के नैन हज़ार
जग से चाहे भाग लो कोई, मन से भाग न पाये
तोरा मन दर्पण कहलाये – २

वैश्णव जन तो तेने कहिये जे
पीड़ परायी जाणे रे
पर-दुख्खे उपकार करे तोये
मन अभिमान ना आणे रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे …

सकळ लोक मान सहुने वंदे
नींदा न करे केनी रे
वाच काच मन निश्चळ राखे
धन-धन जननी तेनी रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे …

सम-द्रिष्टी ने तृष्णा त्यागी
पर-स्त्री जेने मात रे
जिह्वा थकी असत्य ना बोले
पर-धन नव झाली हाथ रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे …

मोह-माया व्यापे नही जेने
द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे
राम नाम सुन ताळी लागी
सकळ तिरथ तेना तन मान रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे …

वण-लोभी ने कपट-रहित चे
काम-क्रोध निवार्या रे
भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता
कुळ एकोतेर तारया रे
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे …

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे, कोई न अपना सिवा तुम्हारे
तुम्ही हो नय्या तुम्ही खिवय्या, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

जो खिल सके ना वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरनों की धूल हम हैं
दया की दृष्टि सदा ही रखना, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना
अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना.

सम्भव है झंझटों में मैं तुम को भूल जाऊँ
पर नाथ कहीं तुम भी मुझको न भुला देना.

तुम देव मैं पुजारी तुम ईश मैं उपासक
यह बात सच है तो फिर सच कर के दिखा देना.

भजो रे भैया राम गोविंद हरी
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी.
जप तप साधन नहिं कचु लागत खरचत नहिं गठरी.
संतत संपत सुख के कारन जासे भूल परी.
कहत कबीर राम नहीं जा मुख ता मुख धूल भरी.

मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊँ.

तूने मुझको जग में भेजा निर्मल देकर काया
आकर के संसार में मैंने इसको दाग लगाया
जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग चुड़ाऊँ.

निर्मल वाणी पाकर मैने नाम न तेरा गाया
नयन मूंद कर हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया
मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊँ.

इन पैरों से चल कर तेरे मन्दिर कभी न आया
जहां जहां हो पूजा तेरी कभी न शीश झुकाया
हे हरि हर मैं हार के आया अब क्या हार चढ़ाऊँ.

प्रभु हम पे कृपा करना प्रभु हम पे दया करना
वैकुण्ठ तो यहीं है इसमें ही रहा करना.

हम मोर बन के मोहन नाचा करेंगे वन में
तुम श्याम घटा बनकर उस बन में उड़ा करना.

होकर के हम पपीहा पी पी रटा करेंगे
तुम स्वाति बूंद बनकर प्यासे पे दया करना.

हम राधेश्याम जग में तुमको ही निहारेंगे
तुम दिव्य ज्योति बन कर नैनों में बसा करना.

कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो
मन को विषयों के विष से हटाते चलो.

देखो इंद्रियों के न घोड़े भगे
रात दिन इनको समय के कोड़े लगे
अपने रथ को सुमार्ग पे चलाते चलो
मन को विषयों के विष से हटाते चलो.

प्राण जाये मगर नाम भूलो नहीं
दुख में तड़पो नहीं सुख में फूलो नहीं
नाम धन का खज़ाना बढ़ाते चलो
मन को विषयों के विष से हटाते चलो.

नाम जपते रहो काम करते रहो
पाप की वासनओं से डरते रहो
प्रेम भक्ति के आँसू बहाते चलो
मन को विषयों के विष से हटाते चलो.

ख्याल आयेगा उसको कभी न कभी
भक्त पायेगा उसको कभी न कभी
ऐसा विश्वास मन में जगाते चलो
मन को विषयों के विष से हटाते चलो.

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
लड्डुओं का भोग चढ़े, सन्त करें सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥

बाँझन को पुत्र देत, कोढ़िन को काया
अन्धे को आँख देत, निर्धन को माया ॥
सूरदास शरण आये, सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥

तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार
उदासी मन काहे को करे..

नैया तेरी राम हवाले,
लहर लहर हरि आप सम्हाले
हरि आप ही उठायें तेरा भार
उदासी मन काहे को करे ..

काबू में मँझधार उसी के
हाथों में पतवार उसी के
तेरी हार भी नहीं है तेरी हार
उदासी मन काहे को करे ..

सहज किनारा मिल जायेगा
परम सहारा मिल जायेगा
डोरी सौंप के तो देख एक बार
उदासी मन काहे को करे ..

तू ‘निर्दोष’ तुझे क्या डर है
पग पग पर साथी ईश्वर है
सच्ची भावना से कर ले पुकार
उदासी मन काहे को करे ..

प्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम
राम राम राम श्री राम राम राम ॥

पाप कटें दुःख मिटें लेत राम नाम
भव समुद्र सुखद नाव एक राम नाम ॥

परम शांति सुख निधान नित्य राम नाम
निराधार को आधार एक राम नाम ॥

संत हृदय सदा बसत एक राम नाम
परम गोप्य परम इष्ट मंत्र राम नाम ॥

महादेव सतत जपत दिव्य राम नाम
राम राम राम श्री राम राम राम ॥

मात पिता बंधु सखा सब ही राम नाम
भक्त जनन जीवन धन एक राम नाम ॥

कन्हैया कन्हैया तुझे आना पड़ेगा आना पड़ेगा
वचन गीता वाला निभाना पड़ेगा.

गोकुल में आया मथुरा में आ
चवि प्यारी प्यारी कहीं तो दिखा
अरे साँवरे देख आ के ज़रा
सूनी सूनी पड़ी है तेरी द्वारिका.

जमुना के पानी में हलचल नहीं
मधुबन में पहला सा जलथल नहीं
वही कुंज गलियाँ वही गोपिआँ
चनकती मगर कोई झान्झर नहीं

सुखके सब साथी दुखमें न कोई
मेरे राम, मेरे राम
तेरा नाम है साचा दूजा न कोई

जीवन आनी जानी छाया
झूठी माया झूठी काया
फिर काहे को सारी उमरिया
पापकी गठरी ढोई

ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा
ये जग जोगीवाला फेरा
राजा हो या रंक सभीका
अंत एकसा होई

बाहरकी तू माटी फांके
मनके भीतर क्यूं न झांके
उजले तनपर मान किया और
मनकी मैल न धोई

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे, कोई न अपना सिवा तुम्हारे
तुम्ही हो नय्या तुम्ही खिवय्या, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

जो खिल सके ना वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरनों की धूल हम हैं
दया की दृष्टि सदा ही रखना, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये.

मुख में हो राम नाम राम सेवा हाथ में
तू अकेला नाहिं प्यारे राम तेरे साथ में
विधि का विधान जान हानि लाभ सहिये

किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा
होगा प्यारे वही जो श्री रामजी को भायेगा
फल आशा त्याग शुभ कर्म करते रहिये

ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के
महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये

आशा एक रामजी से दूजी आशा चोड़ दे
नाता एक रामजी से दूजे नाते तोड़ दे
साधु संग राम रंग अंग अंग रंगिये
काम रस त्याग प्यारे राम रस पगिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये.

बीत गये दिन भजन बिना रे
भजन बिना रे भजन बिना रे.

बाल अवस्था खेल गवाँयो
जब यौवन तब मान घना रे.

लाहे कारण मूल गवाँयो
अजहुँ न गयी मन की तृष्णा रे.

कहत कबीर सुनो भई साधो
पार उतर गये संत जना रे.

जागो बंसीवारे ललना जागो मोरे प्यारे.

रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवाड़े
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना की झनकारे.

उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाड़े द्वारे
ग्वालबाल सब करत कोलाहल जय जय शब्द उचारे.

माखन रोटी हाथ में लीजे गौअन के रखवारे
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर शरण आया को तारे.

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन चार मिलेगा
कहाँ फिरत मघरूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भई साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

तुम तजि और कौन पै जाऊँ
काके द्वार जाइ सिर नाऊँ पर हाथ कहां बिकाऊँ.

ऐसो को दाता है समरथ जाके दिये अघाऊँ
अंतकाल तुम्हरो सुमिरन गति अनत कहूं नहिं पाऊँ.

रंक अयाची कियू सुदामा दियो अभय पद ठाऊँ
कामधेनु चिंतामणि दीन्हो कलप वृक्ष तर चाऊँ.

भवसमुद्र अति देख भयानक मन में अधिक डराऊँ
कीजै कृपा सुमिरि अपनो पन सूरदास बलि जाऊँ.

पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुमही एक नाथ हमारे हो
जिनके कचु और आधार नहीं तिन्ह के तुमही रखवारे हो.

सब भाँति सदा सुखदायक हो दुःख दुर्गुण नाशनहारे हो
प्रतिपाल करो सिगरे जग को अतिशय करुणा उर धारे हो.

भुलिहै हम ही तुमको तुम तो हमरी सुधि नाहिं बिसारे हो.
उपकारन को कचु अंत नही चिन ही चिन जो विस्तारे हो

महाराज महा महिमा तुम्हरी समुझे बिरले बुधवारे हो
शुभ शांति निकेतन प्रेम निधे मनमंदिर के उजियारे हो.

यह जीवन के तुम्ह जीवन हो इन प्राणन के तुम प्यारे हो
तुम सों प्रभु पायि प्रताप हरि केहि के अब और सहारे हो.

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी.

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी.

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता.

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता.

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै.

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै.

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा.

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा.

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार
निज इच्चा निर्मित तनु माया गुन गो पार.

भज मन राम चरण सुखदाई ॥

जिन चरनन से निकलीं सुरसरि शंकर जटा समायी
जटा शंकरी नाम पड़्‌यो है त्रिभुवन तारन आयी ॥

जेहि चरनन की चरनपादुका भरत रह्यो लव लाई
सोइ चरन केवट धोइ लीने तब हरि नाव चढाई ॥

नाई से ना नाई लेत धोबी से न धोबी लेत
देके मजूरिया ये जाति को ना बिगाड़िये
जब आऊँगा मैं तोरे घाट तो पार मोहे उतारिओ ॥

सोइ चरन संतन जन सेवत सदा रहत सुखदाई
सोइ चरन गौतमऋषि नारी परसि परम पद पाई ॥

दंडकवन प्रभु पावन कीन्हो ऋष्यन त्रास मिटाई
सोइ प्रभु त्रिलोक के स्वामी कनक मृगा सँग धाई ॥

कपि सुग्रीव बंधु भय व्याकुल तिन जय चत्र फिराई
रिपु को अनुज बिभीषन निसिचर परसत लंका पाई ॥

शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक शेष सहस मुख गाई
तुलसीदास मारुतसुत की प्रभु निज मुख करत बढ़ाई ॥

नंद बाबाजी को चैया वाको नाम है कन्हैया
कन्हैया कन्हैया रे.
बड़ो गेंद को खिलैया आयो आयो रे कन्हैया
कन्हैया कन्हैया रे.

काहे की गेंद है काहे का बल्ला
गेंद मे काहे का लागा है चल्ला
कौन ग्वाल ये खेलन आये खेलें ता ता थैया ओ भैया
कन्हैया कन्हैया रे.

रेशम की गेंद है चंदन का बल्ला
गेंद में मोतियां लागे हैं चल्ला
सुघड़ मनसुखा खेलन आये बृज बालन के भैया कन्हैया
कन्हैया कन्हैया रे.

नीली यमुना है नीला गगन है
नीले कन्हैया नीला कदम्ब है
सुघड़ श्याम के सुघड़ खेल में नीले खेल खिलैया ओ भैया
कन्हैया कन्हैया रे.

राधे राधे राधे राधे, राधे गोविंदा,
वृन्दावन चंदा
अनाथ नाथ दीन बंधु, राधे गोविंदा ॥

पुराण पुरुष पुण्य श्लोक, राधे गोविंदा,
वृन्दावन चंदा
अनाथ नाथ दीन बंधु, राधे गोविंदा ॥

नंद मुकुंद नवनीत चोर, राधे गोविंदा,
यशोदा बाल यदुकुल तिलक, राधे गोविंदा,
वृन्दावन चंदा
अनाथ नाथ दीन बंधु, राधे गोविंदा ॥

कालिय नर्तन कंस निशूदन, राधे गोविंदा,
गोपी मोहन गोवर्धन धर राधे गोविंदा,
वृन्दावन चंदा
अनाथ नाथ दीन बंधु, राधे गोविंदा ॥

राधा वल्लभ रुक्मिणी कांत राधे गोविंदा,
वेणु विलोल विजय गोपाल, राधे गोविंदा ,
वृन्दावन चंदा
अनाथ नाथ दीन बंधु, राधे गोविंदा ॥

भक्त वत्सल भागवत प्रिय, राधे गोविंदा,
पंढरीनाथा पांडुरंगा राधे गोविंदा,
वृन्दावन चंदा
अनाथ नाथ दीन बंधु, राधे गोविंदा ॥

नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥
भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥
निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥
प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥
प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभो.अप्रमेय वैभवं ॥
निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥
दिनेश वंश मंडनं । महेश चाप खंडनं ॥
मुनींद्र संत रंजनं । सुरारि वृन्द भंजनं ॥
मनोज वैरि वंदितं । अजादि देव सेवितं ॥
विशुद्ध बोध विग्रहं । समस्त दूषणापहं ॥
नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥
भजे सशक्ति सानुजं । शची पति प्रियानुजं ॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराः । भजंति हीन मत्सराः ॥
पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनः सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमद.ह्भुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं ॥
जगद.ह्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥
स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं । नतो.अहमुर्विजा पतिं ॥
प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥
व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुताः ॥